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Articles by लौरेंस दरमानी

दुख में सामर्थ

18 वर्षीय सैमी के यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करने पर, उसके परिवार ने उसे त्याग दिया क्योंकि उनकी परंपरा भिन्न विश्वास की थी। परंतु मसीही समुदाय ने उसे प्रोत्साहन दिया, और शिक्षा के लिए आर्थिक समर्थन देकर उसका स्वागत किया। उसकी गवाही के एक पत्रिका में प्रकाशित होने पर उसका सताव और बढ़ गया।

परंतु जब संभव होता सैमी परिवार से मिलने जाता और अपने पिता से बातें करता। हालाँकि, उसके भाई-बहन उसे परिवार के मामलों में भाग लेने से रोकते। पिता की बीमारी पर उसने परिवार की नाराजगी को नज़रअंदाज़ करके चंगाई के लिए प्रार्थनाएं करते हुए, पिता की सेवा की। जब परमेश्वर ने उन्हें चंगा कर दिया तो परिवार सैमी के प्रति स्नेह दिखाने लगा। समय के साथ उसकी प्रेममई गवाही से उसके प्रति उनका व्यवहार नर्म हुआ-और कुछ परिजन यीशु के बारे में सुनने के लिए इच्छुक हो गए। 

मसीह का अनुसरण करने का हमारा निर्णय कठिनाइयों ला सकता है। पतरस ने लिखा,  “क्योंकि यदि कोई...(1 पतरस 2:19)। विश्वास के कारण जब हम दुख उठाते हैं तो हम ऐसा इसलिए करते हैं, “क्योंकि मसीह भी...(पद 21)। 

जब दूसरों ने उनका अपमान किया, “वह गाली सुन कर...(पद 23)। दुख उठाने का हमारा उदाहरण यीशु हैं। सामर्थ पाने के लिए हम उनके पास आ सकते हैं।

दौड़ ज़ारी रखना

अपने कार्यालय की इमारत के पास कंक्रीट स्लैब की दरार में से एक खूबसूरत फूल को पनपते देखकर मैं आश्चर्यचकित था। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इस नन्हें पौधे को पैर जमाने का स्थान मिल गया था। सूखी दरार में जड़े जमाकर यह फल-फूल रहा था। मैंने देखा कि पौधे के ठीक ऊपर लगे एक एयर कंडीशनिंग यूनिट से पूरे दिन उसपरर पानी गिरता रहता है। विपरीत परिवेश में भी पौधे को उस पानी से वह मदद मिल गई थी जिसकी उसे आवश्यकता थी।

मसीही जीवन में कभी-कभी विकास कठिन लगता है परन्तु जब हम मसीह के साथ दृढ़ता से बने रहेंगे तब बाधाएं पार करना आसन होगा। चाहे हमारी परिस्थितियां प्रतिकूल हों और हम निराश हों तो भी परमेश्वर के साथ अपने संबंध में आगे बढ़ते रहने से हम उस पौधे के समान फलवंत हो सकते हैं। गंभीर कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना होने पर भी प्रेरित पौलुस ने हार नहीं मानी (2 कुरिन्थियों 11:23-27)। “मैं...उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ता हूं...,” उसने लिखा “मैं निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि इनाम पाऊं।” (फिलिप्पियों 3:12,14)

पौलुस ने अनुभव किया कि वह प्रभु में...सब कुछ कर सकते हैं (4:13), हम भी उनकी मदद से दौड़ जारी रख सकते हैं जो हमें सामर्थ देते हैं।

परमेश्वर के निकट जाना

प्रार्थना को इच्छुक एक स्त्री ने एक कुर्सी खींचकर उसके आगे घुटने टेक ली l “रोते हुए, वह बोली, “मेरे स्वर्गिक पिता, मेरे निकट बैठिये; हम दोनों को बात करना ज़रूरी है!” तब, खाली कुर्सी की ओर देखकर, उसने प्रार्थना किया l उसने परमेश्वर के निकट जाने में भरोसा जताया; उसने परमेश्वर को कुर्सी पर बैठे हुए कल्पना करके विश्वास की कि वह उसका निवेदन सुन रहा है l

परमेश्वर के साथ समय एक विशेष क्षण होता है जब हम सर्वशक्तिमान को उसमें शामिल करते हैं l एक आपसी भागीदारी में जब हम परमेश्वर के निकट जाते हैं (याकूब 4:8) l वह भी हमारे निकट आता है l उसने हमें आश्वस्त किया है, “मैं ... सदा तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l हमारा स्वर्गिक पिता सदेव हमारा इंतज़ार करके हमारी सुनना चाहता है l

कितनी बार थके, निद्रालु, बीमार, और निर्बल होने के कारण हम प्रार्थना करने में संघर्ष करते हैं l किन्तु यीशु हमारी दुर्बलता और परीक्षाओं में हमसे सहानुभूति रखता है (इब्रा. 4:15) l इसलिए हम “अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बांधकर चलें कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे (पद.16) l

अत्यधिक अच्छा, बाँटना ही होगा

कचहरी की कार्यवाही के मध्य, दर्शकों से अधिक संख्याओं में गवाह होते हैं l किसी केस का परिणाम निर्धारित करने में ये क्रियाशील भागीदारी निभाते हैं l मसीह के लिए हम गवाहों के साथ भी ऐसा ही है l हमें निरपेक्ष महत्त्व अर्थात् यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय क्रियाशील भागीदार बनना है l

यूहन्ना बपतिस्मादाता लोगों को जगत की ज्योति, यीशु के विषय बताते हुए यीशु के विषय अपने ज्ञान द्वारा घोषणा किया l और इन घटनाओं का लेखक, शिष्य यूहन्ना, ने यीशु के साथ अपने अनुभव की गवाही दी : “वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:14) l प्रेरित पौलुस अपने युवा शिष्य, तीमुथियुस को बताया, “और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों” (2 तीमू. 2:2) l

मसीही के रूप में हम भी संसार की कचहरी में उपस्थित हैं l बाइबिल अनुसार हम भागिदार हैं l यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान की सच्चाई के गवाह हैं l यूहन्ना बपतिस्मादाता मरुभूमि में पुकारनेवाली एक आवाज़ था l हमारी आवाज़ हमारे कार्यस्थल, पड़ोस, चर्च और परिजनों और मित्रों में सुनाई दे l हम अपने जीवनों में यीशु की सच्चाई के क्रियाशील गवाह हो सकते हैं l

सभी परिस्थितियों में

हम अपने उपनगर में निरंतर बिजली कटौती के विषय शिकायत करते हैं l  सप्ताह में तीन बार चौबीस घंटों के लिए, हमारा पड़ोस अन्धकार में डूबा होता है l घरेलु उपकरण उपयोग नहीं कर पाने की स्थिति में यह असुविधा अत्यंत असहनीय है l

मेरी मसीही पड़ोसन अक्सर पूछती है, “क्या हम इसके लिए भी धन्यवाद दें?” वह 1 थिस्सलुनीकियों 5:18  दोहराती है : “हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है l” हम हमेशा कहते हैं, “बिल्कुल सच, हम हर बात में धन्यवाद देते हैं l” किन्तु जिस आधे मन से हम ऐसा कहते हैं, हर बार बिजली जाने पर हमारा  कुड़कुड़ाना इसका खण्डन करता है l

एक दिन, हालाँकि, हर बात में परमेश्वर को धन्यवाद देने  के हमारे विश्वास ने नया अर्थ हासिल किया l कार्य से घर लौटने पर मैंने अपने पड़ोसन को वास्तव में कांपते हुए कहते देखा, “यीशु आपका धन्यवाद कि बिजली बंद थी l मेरे घर के साथ हम सब नाश हो जाते !”

एक कचरा-वाहन के घर के सामने लगे बिजली खम्भे से टकराने से हाई-टेंशन तार अनेक घरों पर गिरे l बिजली रहने से, विनाश हो सकता था l

कठिन परिस्थितियाँ “धन्यवाद प्रभु” कहने में कठिनाई उत्पन्न करती हैं l हम परमेश्वर को धन्यवाद दें जो हर स्थिति को उस पर भरोसा करने का अवसर बनाता है–चाहे हम उसके  उद्देश्य को देखें या न देखें l

अपने बोझ नीचे रख दें

गाँव की सड़क पर एक व्यक्ति अपनी छोटी ट्रक से जाते हुए एक महिला को बोझ उठाकर जाते देखकर, उसे अपने वाहन में बुलाया l महिला धन्यवाद देकर वाहन में सवार हो गई l

कुछ क्षण बाद, उस व्यक्ति ने उस महिला को उसके वाहन में बैठे हुए अभी भी बोझ उठाए हुए पाया! चकित होकर उसने कहा, “कृपया अपना बोझ नीचे रख कर आराम से बैठें l मेरा वाहन आपको और आपकी बोझ को उठाने में सक्षम है l”

हम जीवन के अनेक चुनौतियों के मध्य अक्सर भय, चिंता और घबराहट के बोझ के साथ क्या करते हैं? प्रभु में विश्राम करने की बजाए, मैं कभी-कभी उस महिला की तरह आचरण करता हूँ l यीशु ने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा” (मत्ती 11:28), फिर भी जो बोझ यीशु को देना चाहिए, मैं उठाते देखा जाता हूँ l

हम प्रार्थना में अपने बोझ प्रभु के पास लाकर उतार देते हैं l प्रेरित पतरस कहते हैं, “अपनी सारी चिंता [यीशु] पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारा ध्यान है” (1 पतरस 5:7) l क्योंकि वह हमारी चिंता करता है, हम उसमें भरोसा करना सीखते हुए विश्राम करके आराम पाते हैं l हमें दबाने और श्रमित करने वाले को उठाने की जगह, हम उसे प्रभु को उठाने हेतु दें l

सुख का दूसरा पहलु

हमारे व्यस्क कैंप की विषय-वस्तु थी, “मेरे लोगों को सुख दें l” सभी उपदेशकों ने आश्वास किया l किन्तु अंतिम उपदेशक का स्वर कठोर था l उन्होंने यिर्मयाह 7:1-11 से कहा  “नींद से जागें l” उन्होंने स्पष्टता और प्रेम से, नींद से जागकर  पाप से फिरने की चुनौती दी l

उन्होंने नबी यिर्मयाह समान नसीहत दी, “परमेश्वर के अनुग्रह के पीछे न छिपें और गुप्त पाप छोड़ें l” “हम गर्व करते हैं, ‘मैं मसीही हूँ; परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है; मैं बुराई से डरता नहीं,’ फिर भी हम बुराईयाँ करते हैं l”

हमें ज्ञात था वह हमारे विषय चिंतित था, फिर भी हम उसकी घोषणा से अपनी सीटों पर बेचैन थे, “परमेश्वर प्रेमी और भस्म करनेवाली आग भी है! (देखें इब्रा. 2:29) l वह पाप को माफ़ नहीं करेगा!”

प्राचीन यिर्मयाह लोगों को घबरा किया, “तुम जो चोरी, हत्या और व्यभिचार करते, झूठी शपथ खाते ...दूसरे देवताओं के पीछे ... चलते हो, तो क्या यह उचित है कि तुम इस भवन में आओ जो मेरा कहलाता है, और मेरे सामने ... कहो, ‘हम छूट गए हैं,’ कि ये सब घृणित काम करें?” (7:9-10) l

इस उपदेशक का किस्म “मेरे लोगों को सुख दें” परमेश्वर के सुख का दूसरा पहलु था l जैसे एक कड़वी  औषधि मलेरिया ठीक करती है, उसके शब्द आत्मिक स्वास्थ्य देनेवाले थे l कठोर शब्द सुनते समय, मुहं न फेरकर, उसके स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव को अपनाएं l

पूरा ध्यान दें

मैं प्रेक्षागृह में बैठे हुए, पासवान की ओर ध्यान से देखता रहा l मेरी मुद्रा बता रही थी मैं उनकी हर बात पर ध्यान दे रहा था l अचानक मैंने सबको हँसते और ताली बजाते सुना l चौंककर, इधर-उधर देखा l प्रचारक ने ज़रूर कुछ हास्यकर कहा था, जो मैंने नहीं सुनी l मैं ध्यान दे रहा था, किन्तु वास्तव में मेरा ध्यान दूर था l

जो बोला जा रहा है उसे सुनना संभव है, किन्तु ध्यान नहीं देना, देखना किन्तु गौर न करना, उपस्थित रहना फिर भी अनुपस्थित l ऐसी स्थिति में, महत्वपूर्ण सन्देश छूट सकते हैं l

एज्रा द्वारा यहूदा के लोगों को परमेश्वर का निर्देश सुनाते समय, “लोग व्यवस्था की पुस्तक पर कान लगाए रहे” (नहे. (8:3) l वर्णन के प्रति ध्यान समझ उत्पन्न की (पद.8), जो पश्चाताप और जागृति में परिणित हुई l यरूशलेम में विश्वासियों का सताव आरंभ होने के बाद (प्रेरितों 8:1), सामरिया में एक और स्थिति में, फिलिप्पुस, सामरियों तक पहुंचा l भीड़ ने आश्चर्यजनक चिन्हों पर ही केवल ध्यान नहीं दिया, किन्तु उन्होंने “सुनकर ... एक चित्त होकर मन लगाया” (पद.6) l “और उस नगर में बड़ा आनंद छा गया (पद.8) l

मन एक अस्थिर अनुभवी होकर अपने निकट बहुत सारे उत्तेजनाओं को खो सकता है l उन शब्दों से अधिक ध्यान किसी को नहीं चाहिए जो हमारे स्वर्गिक पिता के आनंद और आश्चर्य प्राप्ति में हमारी सहायता करते हैं l

सचेत और सतर्क

मेरी मेज पड़ोस की ओर खुलनेवाली खिड़की के निकट है l मैं वहाँ से पक्षियों को निकट के पेड़ों पर बैठते हुए देख सकता हूँ l कुछ खिड़की की जाली में फंसे कीटों को खाने आती हैं l

पक्षी अपने आस-पास के तात्कालिक खतरे को जांचती और इधर-उधर देखकर ध्यानपूर्वक सुनती हैं l  खतरा न होने के निशिचय पश्चात ही वह चुगने को बैठती हैं l उसके बाद भी, आस-पास की जांच करने हेतु कुछ पल ठहरती हैं l

इन पक्षियों की सतर्कता मुझे स्मरण दिलाती है कि बाइबिल हम मसीहियों को सतर्कता का अभ्यास सिखाती है l हमारा संसार परीक्षाओं से पूर्ण है, और हमें निरंतर सचेत रहकर खतरों को नहीं भूलना है l आदम और हव्वा की तरह, हम आकर्षणों में फंसते हैं जिससे संसार की वस्तुएँ “खाने के लिए अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य” लगती हैं (उत्प.3:6) l

पौलुस ने सावधान किया, “जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो” (1 कुरिं. 16:13) l और पतरस ने चिताया, “सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के सामान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए” (1 पतरस 5:8) l

दैनिक ज़रूरतों के लिए मेहनत करते हुए, क्या हम बर्बाद करनेवाली बातों की ओर सचेत हैं? क्या हम अभिमान अथवा इच्छा की कोई झलक देखते हैं जो हमें हमारे परमेश्वर पर भरोसा करने की ओर उन्मुख करे?